शिवाजी और छुपा हुआ यात्री: बुद्धिमत्ता और समझ की परीक्षा।

एक बार शिवाजी को जंगल में एक अजनबी यात्री मिला। वह यात्री बहुत ही भूखा-प्यासा था और उसने शिवाजी से भोजन के लिए अनुरोध किया।

शिवाजी ने उस यात्री को अपने दरबार में ले जाकर उसे विशाल भोजन का आमंत्रण दिया। यात्री ने धन्यवाद कहकर भोजन किया और उसके बाद धन्यवाद देकर चला गया।

शिवाजी ने उस यात्री को अपने दरबार में ले जाकर उसे विशाल भोजन का आमंत्रण दिया। यात्री ने धन्यवाद कहकर भोजन किया और उसके बाद धन्यवाद देकर चला गया।

कुछ दिनों बाद, उस अजनबी यात्री वापस आकर शिवाजी के दरबार में पहुंचा। इस बार वह एक महाराजा के रूप में पहना हुआ था और शिवाजी के सामने अपनी असली पहचान छिपाने की कोशिश कर रहा था।

शिवाजी ने उसकी पहचान की और उसे पहचान लिया। वे महाराजा के रूप में उसके प्रति विशेष सत्कार करने लगे।

फिर शिवाजी ने उस यात्री से पूछा, "तुम इस पहले भी यहाँ आए थे, क्या वजह है कि तुम अपनी असली पहचान छिपा रहे हो?"

उस यात्री ने स्वीकार किया, "हाँ, महाराजा, मैं वास्तव में एक साधारण यात्री हूँ, लेकिन मैंने देखा कि आप व्यक्तियों को उनके व्यक्तित्व के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सेवा के आधार पर महत्व देते हैं।

मैंने यह सीखा है कि आदमी की पहचान उसके कार्यों से होनी चाहिए, न कि उसके विद्यमान संपत्ति या स्थिति से।"

शिवाजी ने उस यात्री की बातों को सुना और उसकी सोच को सराहा। उन्होंने उसे धन्यवाद दिया और उसे उसकी यात्रा के लिए आशीर्वाद दिया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि शिवाजी जैसे महान नेता हमेशा विवेकपूर्ण और चालाक होते हैं। वे लोगों के कार्यों और निर्णयों के आधार पर उन्हें महत्व देते हैं, न कि उनके सामर्थ्य या स्थिति के आधार पर।

यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्चा महानता और व्यक्तित्व उसके कार्यों में छिपा होता है, न कि उसकी बाहरी छवि में।