"धरोहर का रक्षक: महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी की प्रतिज्ञा"
एक समय की बात है, महाराणा प्रताप राजपूताना के महाराजा थे और उनका यही उद्देश्य था कि वे अपने राज्य को मुघल साम्राज्य से मुक्त करें।
महाराणा प्रताप का इस लक्ष्य के लिए बड़ा समर्थन था, लेकिन यह कार्य बहुत मुश्किल था। मुघल सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप से युद्ध की प्रस्तावना की ।
उन्हें अपना समर्थन देने के लिए कहा, लेकिन महाराणा प्रताप ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता की बात की थी और मुघलों के अधीन रहने का विरोध किया।
युद्ध की घड़ी आई और हल्दीघाटी की लड़ाई बहुत बड़ी और उत्साहभरी थी। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी वीरता और साहस से मुघल सेना को हराया, लेकिन स्वयं भी घायल हो गए।
महाराणा प्रताप ने युद्धभूमि से हल्दीघाटी के राजमहल छोड़ा नहीं और वहां से नहीं हटे, जब तक कि उनका युद्ध में हार नहीं हो गई।
महाराणा प्रताप की इस अद्भुत वीरता ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमिट गौरव प्रदान किया।
हल्दीघाटी की लड़ाई ने दिखाया कि अगर हम अपनी भूमि, आत्मा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करें, तो हम किसी भी बड़े सेना को भी मुकाबला कर सकते हैं।
महाराणा प्रताप का यह उत्साह और साहस आज भी हमारे दिलों में बसा है और हमें सिखाता है कि सत्य, न्याय और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना हमारा कर्तव्य है।