एक समय की बात है, शिवाजी महाराज ने अपने दरबार में एकलव्य नामक एक युवक को देखा जो अपनी कला में प्रवीण था।
एकलव्य एक अत्यंत प्रतिबद्ध शिक्षायात्री था और उसने शिवाजी को अपने गुरु मानने का इरादा किया।
एक दिन, शिवाजी ने एकलव्य से एक नये योद्धा बनने के लिए अनुरोध किया।
एकलव्य ने शिवाजी के पास आकर विनम्रता से उनके चरणों में शिरष्ट बांधा और उनसे योद्धा बनने का आशीर्वाद मांगा।
शिवाजी ने एकलव्य का श्रद्धाभाव देखकर उसे एक विशेष योजना सुझाई। शिक्षा के लिए गुरुकुल में जाने की जगह, वह ने एकलव्य को अपने साथी योद्धा और नेता बनाने का निर्णय लिया।
एकलव्य ने शिवाजी के साथ रहकर अपनी कला में और भी महारत हासिल की। उसने शिवाजी के साथ राष्ट्र की सेवा करते हुए अपनी वीरता और नेतृत्व कौशल को बढ़ाया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि "शिक्षा और सामर्थ्य में प्रवीण एकलव्य को भी शिवाजी ने साथी योद्धा बनाया, उसकी क्षमताओं को निखारकर राष्ट्र की सेवा में योगदान का मौका दिया।"