"भगवान श्रीकृष्ण और द्रुपदी - साहस और विश्वास की कहानी"
महाभारत काल में द्रुपदी पांच पाण्डवों की पत्नी थीं। एक बार का जब महाभारत युद्ध होने वाला था, द्रुपदी बहुत चिंतित थीं और उनका मन्ने में असंतुष्टि थी।
द्रुपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर अपनी चिंता और असमंजस्य का आलेख किया। उन्होंने कहा, "हे कृष्ण, मैं नहीं जानती कि यह युद्ध हमारे परिवार के लिए कैसा होगा।
मैं चाहती हूँ कि धर्म और न्याय की रक्षा हो, परंतु मेरा मन चिंताग्रस्त है।"श्रीकृष्ण ने द्रुपदी को समझाते हुए कहा, "द्रुपदी, जीवन में समस्याओं और परिक्षणों का सामना करना हर किसी के लिए होता है।
तुम्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और उन्हें ईमानदारी से निभाना चाहिए।"उन्होंने द्रुपदी को युद्ध में भगवान की शरण में जाने का सुझाव दिया और उन्हें यह याद दिलाया कि भगवान हमेशा अपने भक्तों के साथ होते हैं।
द्रुपदी ने श्रीकृष्ण के उपदेशों का पालन किया और युद्ध में भगवान की शरण में जाकर अपने परिवार की रक्षा की। भगवान ने उनकी सहायता की और उनके परिवार को जीत मिली।
इस किस्से से हमें यह सिख मिलती है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और भगवान की शरण में जाना चाहिए। भगवान की प्रेम और शक्ति से ही हम अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।