आयोध्या राम मंदिर का परिचय
अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर बन चुका है, जिससे इस स्थान का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बढ़ गया है। यह आयोध्या राम मंदिर एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है और लोग यहां भगवान राम की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। अयोध्या उत्तर प्रदेश के एक महत्वपूर्ण नगर है जो भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भगवान राम के मंदिर का निर्माण एक लम्बे समय के बाद हुआ है, जिससे यह स्थान अधिक श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक हो गया है। इस मंदिर का निर्माण समर्थन में बहुत सारे लोगों ने योगदान किया है और इसे “श्री राम मंदिर” के नाम से जाना जाता है।
अयोध्या के इस मंदिर का अद्भुत शैली और सुंदर स्थानीय वास्तुकला के कारण यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल बन गया है। यहां के पर्यटक भगवान राम के जीवन के कई पहलुओं को जानने के लिए आते हैं और इस धार्मिक स्थल का दर्शन करने के लिए यहां एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण है।
इस मंदिर के निर्माण से अयोध्या का महत्व और बढ़ गया है और यह स्थान भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक समृद्धि का प्रतीक बन चुका है।
"अद्भुत संरचना: अयोध्या राम मंदिर की आकृति और सामान्य विवरण"
क्षेत्रफल कुल: 2.7 एकड़
क्षेत्रफल कुल सीमित: 57,400 वर्ग फीट।
आयोध्या राम मंदिर की कुल लंबाई 360 फीट है।
आयोध्या राम मंदिर की कुल चौड़ाई 235 फीट है।
आयोध्या राम मंदिर की कुल ऊचाई, शिखर सहित 161 फीट है।
कुल तीन मंजिलें हैं
प्रत्येक मंजिल 20 फीट ऊची है।
मंदिर के भूमिकक्षेत्र में कुल 160 स्तंभ हैं।
मंदिर के पहले मंजिल पर कुल 132 स्तंभ हैं।
मंदिर के दूसरे मंजिल पर कुल 74 स्तंभ हैं।
मंदिर में पाँच पविलियन और पीढ़ियाँ हैं।
मंदिर में बारह दरवाजे हैं।
राम मंदिर मूर्ति: अयोध्या में क्यों स्थापित हुई 5 वर्षीय बालस्वरूप श्रीराम की मूर्ति?
मूर्ति से जुड़ी कुछ खास बातें
सबसे पहले हम आयोध्या राम मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में जान लेते हैं। गर्भगृह में जिस मूर्ति की स्थापना की गई है, उस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच की है। भगवान श्रीराम बालस्वरूप में कमल के आसन पर खड़े हुए हैं, जिनके बाएं ओर हनुमान, मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, ऊं, शेषनाग और सूर्य हैं, जबकि श्रीराम के दाएं ओर गदा, स्वास्तिक, हाथ में धनुष, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि और गरूड़ है। मूर्ति को मुख्यरूप से मैसूर के अरूण योगीराज द्वारा बनाया गया है।
बालस्वरूप मूर्ति की ही स्थापना क्यों
अब सवाल है कि आखिर मंदिर के गर्भगृह में पांच वर्ष की मूर्ति की ही स्थापना क्यों की गई है, तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में बाल्याकल पांच वर्ष की आयु तक माना जाता है। वहीं, पांच वर्ष की आयु के बाद बोधगम्य शुरू हो जाता है। इसके साथ ही मान्यताओं के मुताबिक, जन्मभूमि में बालस्वरूप में ही उपासना की जाती है।
"श्री राम की मूर्ति: श्यामल रंग और श्याम शिला का रहस्य"
श्री राम के बाल रूप स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया है, जो श्यामल रंग की है। ऐसे में कई लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर भगवान श्री राम की मूर्ति काले रंग की ही क्यों बनाई गयी है। इसलिए आइए जानते हैं क्या है भगवान राम की मूर्ति के रंग के पीछे का रहस्य- महर्षि वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम के श्यामल रूप का वर्णन किया गया है। इसलिए प्रभु को श्यामल रूप में पूजा जाता है। वहीं, श्री राम की मूर्ति का निर्माण श्याम शिला के पत्थर से किया गया है।
यह पत्थर बेहद खास है। श्याम शिला की आयु हजारों वर्ष मानी जाती है। यही वजह है की मूर्ति हजारों सालों तक अच्छी अवस्था में रहेगी और इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं आएगा। वहीं, हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान अभिषेक किया जाता है। ऐसे में मूर्ति को जल, चंदन, रोली या दूध जैसी चीजों से भी नुकसान नहीं पहुंचेगा।
"रामलला की मूर्ति के शिल्पकला कलाकार: अरुण योगीराज का परिचय"
अरुण योगीराज, भारतीय मूर्तिकला कला के अद्वितीय शिल्पकलाकारों में से एक हैं। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के समय, उनकी मूर्तिकला ने भगवान राम के प्रति भक्ति और कला का उत्कृष्टता का संबोधन किया।
उनका परिवार मूर्तिकला कला में पांच पीढ़ियों से जुड़ा हुआ है, और उनके प्रसिद्ध दादा, बसवन्ना शिल्पी, को मैसूर के राजा का संरक्षण मिला था। हालांकि, अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद, अरुण ने एक निजी कंपनी में काम करना चुना, और बाद में उन्होंने पूर्णकालिक मूर्तिकला का सफर शुरू किया।
अरुण ने भारतीय इतिहास, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व की विभिन्न मूर्तियों को जीवंत किया है। उनकी शिल्पकला में विविधता और सुशीलता है, जोने उन्हें समृद्धि और प्रशंसा दिलाई है।
अरुण ने अयोध्या में राम मंदिर की मूर्ति से लेकर भारतवर्ष भर में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। उनकी कला और दक्षता ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई है, और उन्हें सरकार से भी सम्मानित किया गया है।
मूर्तिकला कला के माध्यम से अरुण योगीराज ने भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को जीवंत किया है, और उनके कला का अद्वितीयता ने भगवान राम के पूजनीय मूर्तिकला शिल्प के रूप में चमका दिया है।
अरुण योगीराज की कला ने भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को जीवंत रूप से बनाए रखा है और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका ने उन्हें भारतीय कला समाज के एक नेतृत्व की ऊँचाई पर पहुंचाया है। उनका योगदान हमें दिखाता है कि कला न केवल रूपांतरण का साधन है, बल्कि यह भावनाओं, समृद्धि, और आध्यात्मिकता का माध्यम भी हो सकता है।